भारत का कृषि से सीधे सेवा क्षेत्र में स्थानांतरण और औद्योगीकरण की भूमिका | India's economy directly transfers from agriculture sector to service sector

भारत की अर्थव्यवस्था का कृषि से सीधे सेवा क्षेत्र में स्थानांतरण और औद्योगीकरण की भूमिका

आम तौर पर किसी भी अर्थव्यवस्था का विकास तीन चरणों में होता है—पहले कृषि, फिर उद्योग और अंत में सेवा क्षेत्र। लेकिन भारत इस परंपरागत मॉडल का अनुसरण नहीं कर पाया और कृषि से सीधे सेवा क्षेत्र में स्थानांतरित हो गया। इसका मुख्य कारण औद्योगिक विकास की अपेक्षाकृत धीमी गति और सेवा क्षेत्र की तीव्र वृद्धि है।


औद्योगीकरण की बजाय सेवा क्षेत्र की तीव्र वृद्धि के कारण

  1. 1991 का उदारीकरण और वैश्वीकरण

    • आर्थिक सुधारों के बाद भारत ने आईटी, टेलीकॉम और वित्तीय सेवाओं में विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया।
    • सेवा क्षेत्र में उद्यमशीलता और नवाचार को तेजी से अपनाया गया।
  2. श्रम-केंद्रित उद्योगों का कमजोर विकास

    • चीन जैसे देशों ने विनिर्माण को प्राथमिकता दी, लेकिन भारत में श्रम कानूनों, बुनियादी ढांचे की कमी और धीमी प्रक्रियाओं ने औद्योगीकरण को बाधित किया।
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को अपेक्षित समर्थन नहीं मिला।
  3. शिक्षित जनसंख्या और अंग्रेजी का प्रभाव

    • भारत में अंग्रेजी बोलने वाली शिक्षित श्रम शक्ति की अधिकता ने वैश्विक आईटी और बीपीओ सेक्टर को आकर्षित किया।
    • सेवा क्षेत्र में कुशल मानव संसाधन की उपलब्धता ने इसे अधिक प्रतिस्पर्धी बनाया।
  4. बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक्स की चुनौतियाँ

    • कमजोर बुनियादी ढांचे (सड़क, बिजली, लॉजिस्टिक्स) के कारण उद्योगों के विस्तार में बाधा आई।
    • लालफीताशाही और भूमि अधिग्रहण की समस्याओं ने विनिर्माण उद्योग को धीमा किया।
  5. उच्च तकनीकी और सेवा क्षेत्र का आकर्षण

    • स्टार्टअप संस्कृति, ई-कॉमर्स, और डिजिटल इंडिया जैसी पहलों ने सेवा क्षेत्र को आगे बढ़ाया।
    • बैंकिंग, बीमा, और स्वास्थ्य सेवाओं में डिजिटलीकरण के कारण यह क्षेत्र तेजी से बढ़ा।

क्या मजबूत उद्योग के बिना भारत विकसित राष्ट्र बन सकता है?

औद्योगीकरण भारत के लिए अनिवार्य है क्योंकि:

  1. रोजगार सृजन:

    • सेवा क्षेत्र अधिकतर उच्च-कुशल श्रमिकों को रोजगार देता है, जबकि भारत में बड़ी आबादी अभी भी कम या मध्यम-कुशल है।
    • उद्योगों के विकास से बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा, जो आवश्यक है।
  2. आर्थिक संतुलन:

    • सेवा क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता से अस्थिरता बढ़ सकती है, विशेष रूप से वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान।
    • विनिर्माण क्षेत्र से संतुलित वृद्धि सुनिश्चित होगी।
  3. आयात निर्भरता कम करना:

    • मजबूत विनिर्माण क्षेत्र से "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत" को बढ़ावा मिलेगा, जिससे भारत की आयात निर्भरता घटेगी और व्यापार घाटा कम होगा।
  4. ग्रामीण-शहरी असमानता कम करना:

    • औद्योगीकरण से ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों का विकास होगा और शहरी-ग्रामीण आर्थिक असमानता घटेगी।
  5. वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त:

    • चीन, जर्मनी, जापान जैसे देशों की सफलता का आधार उनका मजबूत औद्योगिक आधार रहा है। भारत को भी वैश्विक विनिर्माण शक्ति बनने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

भारत का कृषि से सीधे सेवा क्षेत्र की ओर जाना असंतुलित आर्थिक विकास को दर्शाता है। हालाँकि सेवा क्षेत्र भारत की जीडीपी का सबसे बड़ा योगदानकर्ता है, लेकिन औद्योगीकरण के बिना "विकसित देश" बनने की राह कठिन होगी।

भारत को "मजबूत औद्योगीकरण नीति" अपनानी होगी, जिसमें बुनियादी ढांचे का विकास, श्रम सुधार, तकनीकी नवाचार और MSME को प्रोत्साहन शामिल हो। "मेक इन इंडिया," "प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI)," और "आत्मनिर्भर भारत" जैसी पहलें इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

यदि भारत सेवा और विनिर्माण क्षेत्र के बीच संतुलन स्थापित कर लेता है, तो 2047 तक "विकसित भारत" बनने की उसकी महत्वाकांक्षा पूरी हो सकती है।

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