श्रम-प्रधान निर्यात लक्ष्यों को प्राप्त करने में भारत के विनिर्माण क्षेत्र की विफलता के कारण | Due to failure of India's manufacturing sector in achieving labor-dominated export goals

श्रम-प्रधान निर्यात लक्ष्यों को प्राप्त करने में भारत के विनिर्माण क्षेत्र की विफलता के कारण

भारत की विशाल श्रमशक्ति को देखते हुए श्रम-प्रधान विनिर्माण उद्योग (जैसे वस्त्र, चमड़ा, खिलौने, और फर्नीचर) को निर्यात में प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए थी। लेकिन इसके बजाय, भारत की निर्यात संरचना पूंजी-गहन (Capital-intensive) उद्योगों की ओर अधिक झुकी हुई है, जैसे कि पेट्रोकेमिकल्स, ऑटोमोबाइल, और फार्मास्युटिकल्स। इसके पीछे कई प्रमुख कारण हैं:


1. कठोर श्रम कानून और नियामक बाधाएँ

  • भारत के श्रम कानून जटिल और सख्त हैं, जिससे विनिर्माण कंपनियों को बड़े पैमाने पर श्रमिकों को नियुक्त करने में कठिनाई होती है।
  • चीन, वियतनाम और बांग्लादेश में अधिक लचीले श्रम कानून होने के कारण वहाँ के उद्योग अधिक प्रतिस्पर्धी बने।

2. विनिर्माण में उच्च लॉजिस्टिक्स लागत और बुनियादी ढांचा बाधाएँ

  • खराब लॉजिस्टिक्स और उच्च परिवहन लागत भारतीय उत्पादों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को सीमित करते हैं।
  • बिजली की अस्थिर आपूर्ति और धीमी भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया उद्योगों के विस्तार में बाधक बनी हुई हैं।

3. व्यापार समझौतों में सीमित भागीदारी

  • भारत अभी तक कई महत्वपूर्ण मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) का हिस्सा नहीं बना है, जिससे भारतीय उत्पाद अन्य देशों की तुलना में महंगे हो जाते हैं।
  • इसके विपरीत, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों को कई बड़े बाजारों में शुल्क-मुक्त या कम शुल्क वाली पहुंच प्राप्त है।

4. कौशल अंतर और तकनीकी चुनौतियाँ

  • भारत की विशाल जनसंख्या के बावजूद, कुशल श्रमिकों की कमी बनी हुई है।
  • कौशल विकास कार्यक्रमों और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच सामंजस्य की कमी के कारण श्रम-प्रधान उद्योगों को पर्याप्त रूप से विकसित नहीं किया जा सका।

5. पूंजी-गहन उद्योगों को अधिक प्राथमिकता

  • सरकारी नीतियाँ और प्रोत्साहन योजनाएँ (PLI, टैक्स छूट) मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे पूंजी-गहन उद्योगों के लिए बनाई गई हैं।
  • श्रम-प्रधान उद्योगों को अपेक्षित समर्थन और निवेश नहीं मिला।

श्रम-प्रधान निर्यात बढ़ाने के लिए आवश्यक सुधार

भारत को अपने श्रम-प्रधान विनिर्माण उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित रणनीतियाँ अपनानी चाहिए:

1. लचीले और व्यावहारिक श्रम सुधार

  • श्रम कानूनों को सरल और अधिक उदार बनाया जाए ताकि उद्योगों को बड़े पैमाने पर रोजगार देने में आसानी हो।
  • "फिक्स्ड-टर्म एम्प्लॉयमेंट" (Fixed-Term Employment) को प्रोत्साहित किया जाए, जिससे कंपनियाँ मांग के अनुसार कर्मचारियों को नियुक्त कर सकें।

2. लॉजिस्टिक्स और बुनियादी ढांचे में सुधार

  • लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिए "गति शक्ति योजना" जैसी पहलों को तेज़ी से लागू किया जाए।
  • बिजली, पानी, और औद्योगिक पार्कों की सुविधा को बेहतर बनाया जाए।

3. श्रम-प्रधान उद्योगों के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) और क्लस्टर

  • टेक्सटाइल, चमड़ा, और फर्नीचर जैसे उद्योगों के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाए जाएँ।
  • "मेक इन इंडिया" और "वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट" जैसी नीतियों को अधिक प्रभावी बनाया जाए।

4. वैश्विक व्यापार समझौतों में सक्रिय भागीदारी

  • भारत को अधिक मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) में शामिल होना चाहिए ताकि निर्यात के लिए नए बाजार खोले जा सकें।
  • बांग्लादेश और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्धियों के साथ व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को समझकर नीतियाँ बनाई जाएँ।

5. कौशल विकास और टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन

  • श्रम-प्रधान उद्योगों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाएँ।
  • "स्किल इंडिया" को औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाए।

6. MSME और छोटे उद्योगों को समर्थन

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को सस्ते ऋण, कर में छूट, और सरल लाइसेंसिंग प्रक्रियाएँ दी जाएँ।
  • छोटे उद्यमों को वैश्विक सप्लाई चेन से जोड़ने के लिए नीतियाँ बनाई जाएँ।

निष्कर्ष

अगर भारत को वैश्विक विनिर्माण शक्ति बनना है, तो उसे श्रम-प्रधान उद्योगों को बढ़ावा देना ही होगा। "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत" जैसे कार्यक्रमों को सही तरीके से लागू करके, बुनियादी ढांचे में सुधार करके, और निर्यात प्रोत्साहन नीतियाँ अपनाकर भारत अपने श्रम-प्रधान निर्यात लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है और एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ सकता है।

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